अनुक्रमणिका
क्रम विषय
1. ग्राम कचहरी का वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में महत्व
2. ग्राम कचहरी के सरपंचों, पंचों, न्यायमित्रों एवं सचिवों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
3. प्रशिक्षण चर्चा, ग्राम कचहरी का गठन, कार्यकाल
4. ग्राम कचहरी के दाण्डिक क्षेत्राधिकार
5. ग्राम कचहरी के दीवानी क्षेत्राधिकार
6. ग्राम कचहरी के दीवानी मामलों का दायर किया जाना एवं ट्रायल
7. ग्राम कचहरी द्वारा पारित आदेश/डिक्री का कार्यान्वयन
8. ग्राम कचहरी में आपराधिक मामलों का दायर किया जाना एवं ट्रायल
9. ग्राम कचहरी के अपीलीय क्षेत्राधिकार
10. प्रक्रियाओं से संबंधी आवश्यक जानकारी यथा सम्मन का निर्गत होना एवं तामीला
11. आर्डर शीट/न्यायदेश लिखने की बुनियादी ज्ञान
12. ग्राम कचहरी में संधारित किए जाने वाली पंजीयों एवं प्रपत्रों का नमूना
13. भारतीय दण्ड संहिता की उन धाराओं की विषय-वस्तु जिनके संबंध में सुनवाई/विचारण
14. विशेष जानकारी
ग्राम कचहरी का वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में महत्व
भारत गॉँवों का देश है। देश की अधिकांश जनता गॉँवों में बसती है। ग्रामवासी अशिक्षा एवं गरीबी के शिकार हैं। ग्रामीण विकास हेतु सरकार कटिबध्द है। ग्राम वासियों का सुलभ एवं सस्ता न्याय प्रदान करने हेतु बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के तहत ग्राम कचहरी की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
इसके तहत मुख्य उद्देश्य यह है कि ग्राम वासियों को अपने विश्वास एवं वौट से चुने गये जन प्रतिनिधियों के द्वारा उनके दरवाजे पर ही अगर कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो बिना किसी उलझन एवं परेशानी के, बिना किसी अनावश्यक खर्च के न्याय प्राप्त हो सके। राष्ट्रपिता महात्मा गॉँघी ने यह सपना संजोया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-40 में यह वर्णित है कि राज्य सरकार पंचायत का गठन करेगी एवं पंचायत को स्वायत्ता इकाई के रूप में कार्य करने हेतु शक्ति एवं अधिकार प्रदान करेगी। संविधान निर्माताओं के इस अभिलाषा को साकार करने हेतु वर्ष 2006 में बिहार पंचायत राज अधिनियम में विशेष व्यवस्था की गई।
बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा-90 के तहत ग्राम कचहरी की स्थापना का प्रावधान है। ग्राम कचहरी के कुल पंचों के कुल स्थानों का 510 प्रतिशत अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लिए धारा-91 के तहत आरक्षित किए गए हैं, इसका मुख्य उद्देश्य समाज के दबे, कुचले, उपेक्षित एवे अवसरहीनता के शिकार लोगों को मुख्य धारा में लाना है एवं समाज के अन्तिम पायदान पर बैठे लोगों को यह एहसास दिलाना है कि सरकार में उनकी भागीदारी की अहम भूमिका है। महिलाओं को भी मुख्य धारा से जोड़ने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
ग्राम कचहरी की अवधि पांच वषें तक की होगी । ग्राम कचहरी का सरपंच ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में नामांकित मतदाताओं के बहुमत द्वारा चुना जाएगा। सरपंच के साथ-साथ उप सरपंच का भी निर्वाचन होगा, ऐसी व्यवस्था की गई है। सरपंच के पद के लिए कुल पदों के 50 प्रतिशत के निकटतम स्थान आरक्षित किए गए हैं ताकि समाज के उपेक्षित लोगों की भागीदारी मुख्य रूप से हो सके।
ग्राम कचहरी में एक सचिव की नियुक्ति की जाएगी एवं ग्राम कचहरी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता के लिए न्याय मित्र की नियुक्ति करेगा, जो विधि स्नातक होंगे। सरपंच,उप-सरपंच एवं पंचों को सरकार की ओर से प्रशिक्षण की व्यवस्था धारा-94 के तहत की जाएगी।
सरपंच ग्राम कचहरी का उध्यक्ष होगा। किसी भी व्यक्ति के आवेदन एवं पुलिस रिपोर्ट पर केस एवं मामला दर्ज होगा। ग्राम कचहरी पक्षकार एवं गवाह की उपस्थिति उसी तरीके से करायेगा, जिस तरीके से न्यायालय करती है।
सरपंच तथा उप-सरपंच को तथाकथित अनियमितता बरतने पर हटाये जाने का भी प्रावधान है ताकि परिस्थिति विशेष में वे निरंकुश न हो जायें एवं कानून की मान्यताओं के खिलाफ कार्य करना शुरू न कर दें। अविश्वास प्रस्ताव द्वारा भी सरपंच को हटाने का प्रावधान धारा-96 में किया गया है। ग्राम कचहरी का कोई भी पंच अपने पद का त्याग कर सकता है। आकस्मिक रिक्ति को भी पूरा किए जाने को प्रावधान है।
कोई भी केस या मामला सरपंच के समक्ष दायर किया जाएगा एवं संबंधित पक्षकार को भी ग्राम कचहरी के पंचों में से दो पंच चुनने का अधिकार है ऐसी व्यवस्था इसलिए की गई है कि अपने चुने गये पंच के माध्यम से न्याय की प्राप्ति हो सकें एवं न्यायिक प्रक्रिया में ग्राम वासियों की आस्था बनी रहें।
ग्राम कचहरी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ग्राम वासियों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाये रखना है। यह अनिवार्य रूप से स्थापित किया गया है कि गा्रम कचहरी की न्यायपीठ किसी भी मामले की सुनवाई करते समय पक्षकारो के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता कराने का प्रयास करेगी। गॉँवों में शिक्षा की कमी एवं गरीबी के कारण आये दिन कोई-न-कोई विवाद हुआ करते हैं एवं ग्राम वासी जटिल कानूनी प्रक्रिया के चक्कर मं फॅँस जाते हैं एवं बाद में चाहते हुए भी आपस में समझौता न कर पाते है। इसलिए इन मुद्दों को ध्यान में रखकर सर्वप्रथम यह प्रावधान किया गया कि किसी भी मुद्दे या विवाद को सामने आने पर ग्राम कचहरी का दायित्व होगा कि पक्षकारें के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार कर समझौता कराए ताकि ग्राम वासियों की मेहनत की कमाई का पैसा उनके विकास पर खर्च हो न कि कानून की जटिल प्रक्रियाओं पर।
यदि ग्राम कचहरी समझौता कराने में पूर्णत: विफल रहती है, तो वैसी स्थिति में ग्राम कचहरी में ही, जो ग्राम वासियों के समीप में ही होता है, कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए पूरे मामले की जाँच कर अपना निर्णय देगा। निर्णय लिखित रूप में होगा एवं इस पर सभी सदस्यों का हस्ताक्षर होगा।
ग्राम कचहरी को दो तरह की अधिकारिता दी गई है। धारा-106 एवं 107 के तहत दाण्डिक अधिकारिता दी गई है एवं इस बात को मद्देनजर रखते हुए किर् वर्त्तमान न्यायिक व्यवस्था में न्यायालय वादों के निष्पादन में वर्षे बरस लगा रहा है, ग्राम कचहरी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-140, 142, 143, 144, 145, 147, 151, 153, 160, 172, 174, 178, 179, 269, 277, 283, 285, 286, 289, 290, 294, 294(ए), 332, 334, 336, 341, 352, 356, 357, 374, 403, 426, 428, 430, 447, 448, 502, 504, 506, एवं 510 के तहत किए गए अपराधों के लिए केस को सुनने एवं निर्णय देने के अधिकारिता होगी। ये धराएं मुख्यत: विधि के विरूध्द जमाव से विखर जाने के आदेश दिए जाने के बाद भी उसमें बंधे रहने, बलवा करने के लिए उकसाना, दंगा करने के लिए उकसाना एवं दंगा करना, सम्मन की तामिल से फरार हो जाना, लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर हाजिर रहना, शपथ से इनकार करना, लोक सेवक को उत्तर देने से इनकार करना, उपेक्षपूर्ण कार्य करना, जिससे संकट पूर्ण रोग का संक्रमण संभव हो, जलाशय को कलुषित करना, लोगो मार्गमें बाधा पहुँचाना,अग्नि के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण, आचरण, विस्फोटक पदार्थ के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण, जीव-जन्तु के संबंध में उपेक्षापूर्ण आचरण, लोक न्यूसेन्स करना, अश्लील कार्य एवं गाने गाना एवं लौटरी कार्यालय रखना, किसी को चोट पहुँचाना, स्वेच्छापूर्वक किसी को किसी के प्रकोप पर चोट पहुँचाना, वैसा कार्य करना जिससे दूसरे को संकट हो, किसी को अवरोधित करना, अपराधिक बल काप्रयोग करना, किसी व्यक्ति का गलत ढंग़ से रोक रखने में आपराधिक बल का प्रयोग करना, मिसचिफ कराना, सम्पत्तिा करना (रिष्टि), जीव-जन्तु का वध करना, जल को क्षति करना, आपराधिक अतिचार कना, गृह अतिचार करना, मानहानि कारक समान रखना या बेचना, लोक शान्ति भंग करना, आपराधिक अभित्रास करना,लोक स्थान में शराब पीना से संबंधित है। इसके अलावे पशु अतिचार अधिनियम एवं लोक धूत अधिनियम से संबंधित मामले को भी सुनने का अधिकार ग्राम कचहरी को दिया गया है।
धारा-107 के तहत ग्राम कचहरी को एक हजार रूपये तक जुर्माना करने की शक्ति दी गई है। गा्राम कचहरी निंकुश न हो जाये इसकें लिए यह प्रवाधान किया गया है कि ग्राम कचहरी को करावास की सजा देने का कोई अधिकार नहीं है। झुठा या तुच्छ या परेशान करने वाला अभियोग लगाने पर प्रतिकर अदा करने का निदेश दिया जा सकता है।
ग्राम कचहरी अपनी सिविल अधिकारिता के तहत धारा-110 के अनुसार दस हजार रूपये से कम सम्पत्ति, लगान की वसूली, चल सम्पत्तिा को क्षति पहुँचाने, पशु अतिचार एवं बँटवारा के मामला से सम्बंघित होगा। बॅँटवार के सभी मामले सुने जायेगे। धारा-111 के तहत कुछ प्रतिबंध भी लगाये गये है ताकि न्यायालय की अक्षुण्णता एवं गरिमा भी बनी रहे।
ग्राम कचहरी की न्यायपीठ के निर्णय के खिलाफ 30 दिनों के भीतर ग्राम कचहरी की पूर्ण पीठ के समक्ष अपील दायर किये जाने का प्रावधान धारा-112 के तहत है। पूर्ण पीठ की सुनवाई 7 पंचों के द्वारा की जाएगी।
ग्राम कचहरी की पूर्ण पीठ के निर्णय के विरूद्ध अपील 30 दिनों के भीतर सिविल मामले में अवर न्यायधीश के समक्ष एवं आपराधिक मामले में जिला एवं सत्र न्यायधीश के समक्ष दायर की जायेगी।
धारा-113 के तहत किसी थाना के प्रभारी पदाधिकारी को भी ग्राम कचहरी के द्वारा विचारणीय कोई भी अपराध के सूचना दिये जाने को प्रावधान है।
धारा-114 के तहत जब कभी भी किसी न्यायालय को ऐसा प्रतीत हो कि मामला ग्राम कचहरी के द्वारा विचारणीय है तो मामला उसकी अधिकारिता को अंतरित कर देगा।
धारा-115 के तहत न्यायालय स्वत: या सूचना प्राप्त हाने पर ग्राम कचहरी के द्वारा विचाराधीन मामले को वापस कर देगा।
धारा-116 के तहत ग्राम कचहरी में विधि व्यवसायी को उपस्थित होने, बहस करने एवं कार्य करने से रोक लगा दिया गया है। लेकिन धारा-117 के तहत पक्षकार स्वयं या कुटुम्ब,मित्र या अन्य व्यक्तियों के माध्यम से उपस्थित हो सकेंगे। न्यायालय कभी भी ग्राम कचहरी के अभिलेख को मांग कर देख सकता है। मामले का स्थानांतरण कर सकता है। किसी कार्यवाही को रद्द कर सकता है। पूर्णविचारण हेतु लौटा सकता है। रिपोर्ट मांग सकता है। यह प्रवाधान धारा-118 के तहत इसलिए किया गया कि ग्राम कचहरी के उपर न्यायालय का नियंत्रण बना रहे।
ग्राम कचहरी को वारंट जारी करने का अधिकार नहीं है। यदि किसी अभ्यिुक्त का उपस्थित कराने में गा्रम कचहरी असमर्थ हो जाय, तो वैसी परिस्थिति में जमानती वारंट न्यायिक दण्डाधिकारी के पास अग्रसारित किया जायेगा, जो वारंट को प्रतिहस्ताक्षर कर उस थाना प्रभारी के पास अग्रसारित कर देगा। इसके अलावे यदि सिविल मामले में ग्राम कचहरी डिक्री को निष्पादित करने में असमर्थ हो तो निष्पादन हेतु मुन्सिफ के पास भेज देगा। यह व्यवस्था घारा-119 के तहत की गई है।
धारा-120 के तहत तीन वर्ष की समाप्ति के बाद किसी वाद पर विचार नहीं किया जायेगा। ऐसा प्रावधान लिमिटेशन एक्ट को ध्यान में रख कर किया गया है।
धारा-122 के तहत जिला न्यायाधीश ग्र्राम कचहरी की कार्यवाहियों एवं अभिलेखें के निरीक्षण करने में सक्षम है।
प्राय: ऐसा देखा जाता है कि तुक्ष्य या परेशान करने वाले मुकदमो में भी ग्राम वासी सुबह से शाम तक अपने ग्राम से कोसों दूर कानूनी उल्झनों में अपने आप को वयस्त रखते है,जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी खराब होती चली जाती है, क्योंकि दिनभर घर से बाहर रहने पर जीवकोपार्जन एवं खेती गृहस्थी का कार्य भी प्रभावित होता है एवं शहर में जाने पर फिजुल खर्ची के कारण आर्थिक तंगी का शिकार होना पड़ता है। संविधान निर्माताओं ने ग्राम वासियों का कानून की जटिबल प्रक्रियाओं से निजात दिलाने के लिए इस बात की कल्पना की थी कि उन्हें कानून की जटिलतम प्रक्रियाओं से मुक्ति दिलाने का एक ही माध्यम है और वह है ग्राम कचहरी, जहाँ अपने द्वारा चुने गये पंच, सरपंच एवं उप- सरपंच के द्वारा सौहार्दपूर्ण वातावरण में उनकी शिकायतों एवं वादों का निपवटारा कम-से-कम समय में पूण्र आस्था एवं निष्ठा के साथ किया जा सके।
वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में सरकार संविधान निर्माताओं के अभिलाषओं को साकार करने हेतु कृत संकल्प है एवं संभव सहायता सरकार के द्वारा उपलब्ध कराई जा सके ताकि न्याय सर्वसुलभ हो।
विषय वस्तु: ग्राम कचहरी का गठन, कार्यकाल, शक्तियॉँ एवं कार्य (बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा 90,92 एवं 96)
धारा-90 ग्राम कचहरी का गठन (Constitution of Gram Panchayat)
1 प्रत्येक ग्राम पंचायत में जनता की सुलभ एवं सुगम न्याय के लिए एक ग्राम कचहरी की स्थापना की गई जिसमें एक निर्वाचित सरपंच होता है तथा प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र में लगभग 500 की आबादी पर एक पंच होता है। पंचों का निर्वाचन प्रादेशिक निर्वाचन हेतु ग्राम पंचायत के सदस्यों के निर्वाचन के अनुरूप होता है।
2. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र एक पंच का निर्वाचन विहित रीति से प्रत्यक्ष रूप से करता है।
3. प्रत्येक ग्राम कचहरी के गठन के पश्चात उसे जिला गजट में प्रकाशित किया जाता है तथा ग्राम कचहरी की प्रथम बैठक की नियत तारीख से ग्राम कचहरी प्रभावी होता है।
धारा-92 ग्राम कचहरी की अवधी (Tenure)
1. प्रत्येक ग्राम कचहरी की अवधी 5 वर्षो की होगी बशर्ते (अगर) उसे तत्समय प्रवृत किसी विधि के अधीन समय से पूर्व विघटित नहीं किया जाता है। पॉँच वर्षो की अवधि की गणना ग्राम-कचहरी की प्रथम बैठक के लिए निर्धारित तिथि से की जायेगी। ग्राम कचहरी की अवधि पाँच वर्षो से अधिक की नहीं होगी।
2. ग्राम कचहरी का गठन करने के लिए निम्नलिखित रूप से निर्वाचित पूरा किया जायेगा-
(क) उपधारा (i) में विनिदिष्ट उसकी कार्य अवधि समाप्त हाने के पूर्व
(ख) कार्य अवधि पूर्व विघटन होने की स्थिति में यदि ग्राम-कचहरी का कार्यकाल छ: महीना से अधिक यदि बच रहा हो तो निर्वाचन द्वारा ग्राम-कचहरी का गठन किया जायेगा, परन्तु छ: महीने से कम अवधि बचा (शेष) रहने पर निर्वाचन आवश्यक (अनिवार्य) नहीं होगा।
III. कार्य अवधि के पूर्व यदि ग्राम कचहरी का निव्राचन द्वारा पुन: गठन होता है तो गठिति ग्राम कचहरी का कार्यकाल शेष बचे अवधि के लिए ही प्रभावी होगा, अर्थात् प्रथम बार गठित ग्राम कचहरी का पूर्ण कार्यकाल जब समाप्त होता है (यदि विघटित नहीं होता) उसी तिथि तक नई गठित गा्रम कचहरी प्रभावी रहेगा।
धारा-96 सरपंच और उपसरपंच की शक्तियॉँ एवं कार्य (Power and Functions of Sarpanch and Upsarpanch)-
(क) सरपंच मुख्य रूप से ग्राम कचहरी तथा न्यायपीठ का अध्यक्ष होगा।
(ख) पक्षकारों के आवेदन और पुलिस के रिपोर्ट पर वाद या मामला दर्ज करेगा।
(ग) पक्षकारों और गवाहो की उपस्थिति के लिए कारवाई करेगा, दस्तावेजों, लिखितों को ग्राम कचहरी न्यायपीठ के सामने प्रस्तुत करने के लिए भी कारवाई करेगा तथा ऐसा कार्य करने के लिए वह सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अधीन सिविल न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग करेगा।
इसकी अनुपस्थिति की दशा में सरपंच के सारे कार्यो का, कर्तव्यों की एवं सारे अधिकारों का प्रयोग उपसरपंच करेगा तथा किसी अन्य शक्ति अथवार् कत्ताव्यों का भी प्रयोग अथवा निष्पादन करेगा जोकि विधि संगत होगा।
विषय वस्तु: ग्राम कचहरी के क्रिमनल क्षेत्राधिकार (बिहार पंचायत राज अधिनियम की धारा 106,107, एवं 109 )
धारा-107 ग्राम कचहरी की दाण्डिक अधिकार (Criminal jurisdeiction of Gram katchahari)- ग्राम कचहरी की न्यापीठ ग्राम कचहरी की स्थानीय सीमाओं के भीतर किये गये अपराध या अपराधें के दुस्प्रेरण या प्रयासें के विचारण की अधिकारिता होगी जो कि-
(क) भारतीय दण्ड संहिता (45, 1860) के निम्नलिखित धाराओं के अन्तर्गत किये गये हों-
धारा- 140, 142, 143, 145, 147, 151, 153, 160, 172, 174, 178, 179, 269, 277, 283, 285, 286, 289, 290, 294, 294 (ए), 332, 334, 336, 341, 352, 356, 357, 374, 403, 426, 428, 430, 447, 448, 502, 5041, 506, एवं 510, के अन्तर्गत अपराध किये गयें हैं।
(नोट: उपर्युक्त धाराओं की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में आगे दी गई है।)
(ख) बंगाल लोक धुत अधिनियम, 1867 (बंगाल अधिनियम 2, 1867) के अधीन किया गया अपराध हो।
(ग) पशु-अतिचार अधिनियम, 1871(1,1871) की धारा 24 और 26 के अधीन किया गया अपराध हो।
(घ) अन्यथा उप बंधित को छोड़कर, इस अधिनियम या इसी के अधीन बनाये गये किसी नियम या उपविधि के अधीन किये गये अपराध हो।
(ड.) किसी अन्य अधिनियम के अधीन किया गया कोई अन्य अपराध, यदि सरकार द्वारा इसके वावद में शक्ति प्रदान की जाय;
परन्तु, ग्राम कचहरी किसी ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी जिसकी बावत इस अधिनियम के प्रभाव में आने के पूर्व समक्ष अधिकारित वाले किसी न्यायालय कि समक्ष कोई कार्यवाही पूर्व से ही लंबित हो, परन्तु न्यायपीठ (बेंच) भारतीय दंड संहिता 1860 (45, 1860) की धारा 379, 380, 381, या 411 के अधीन किये गये किसी ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगा, जिसमें चुराई गई सम्पति की मूल्य दस हजार रूपये से अधिक का हो या जिसमें अभियुक्त की यदि-
(i) भारतीय दण्ड संहिता 1860, (45, 1860) के अध्याय XVII कि अधीन दण्डनीय अपराध के लिए पूर्व में तीन वर्षा या उससे अधिक अवधि का कारावास के लिए दोष सिध्द (दोषी) ठहराया गया हो, या,
(ii) ग्राम कचहरी की किसी न्यायपीठ के द्वारा चोरी के लिए पूर्व में जुर्माना किया गया हो, या
(iii) दण्ड प्रकिया संहिता 1973 (2, 1973) की धारा 109 या 110 के अधीन चलाई गई कार्यवाही में सद्वव्यवहार करने के लिए काराबध्द किया गया हो, या
(iv) ग्राम कचहरी न्यायपीठ ग्राम पंचायत के मुखिया , कार्यकारणी के सदस्य सरपंच पंच पर यदि मुकदमा दर्ज किया हो तो संज्ञान नहीं लेगा।
घारा-107 ग्राम कचहरी न्यायपीठ के दाण्डिक शक्तियाँ
(i) ग्राम कचहरी की न्यायपीठ पक्षों को सुनने के बाद एवं न्यायपीठ के समक्ष पेश किये गये साक्षों पर विचार करने के बाद अपना निर्णय अभिलिखित करेगी, दोष सिध्द हाने पर वह अपराधी को ऐसा जुर्माना से दण्डित करेगी जिसकी राशि एक हजार से ज्यादा का न हो। परन्तु, अगर मामले के विचारण के समक्ष पीठ यानी न्यायपीठ में उपस्थिति सदस्य समुदाय एक मत नहीं हो तो वैसे सदस्यों का बहुतम का निर्णय ग्राम कचहरी न्यायपीठ का निर्णय होगा। परन्तु आगे यह कि मामले के विचारण में न्यायपीठ में उपस्थिति सदस्यों के मतों की गणना बराबरी का हो जाय तो उस परिस्थिति में सरपंच अपना निर्णायक मत देगा तथा पीठ का उक्त निणर्य सरपंच के द्वितीय अथवा निर्णायक मत के अनुसार होगा।
(ii) ग्राम कचहरी की कोई पीठ, साधारण या सश्रम कारावास नहीं दे सकेगी, चाहे वह मूल दण्डादेश में हो या जुर्माना का भुगतान करने में व्यक्तिक्रम करने पर हो।
(iii) जब कोई न्यायपीठ धारा (1) के अधीन कोई जुर्माना अधिरोपित करती है वह आदेश पारित करते समय निर्देश दे सकती हैं कि वसुले गये जुर्माना का सम्पूर्ण अथवा अंश उस अपराध के कारण हुई हानि अथवा क्षति के प्रतिकर के भुगतान के लिए उपयोजित किया जायेगा।
(iv) जब किसी व्यक्ति को ग्राम कचहरी की किसी न्यायपीठ द्वारा सजा दी जाय, तब वह न्यायपीठ इस तरह दण्डादिस्ट व्यक्ति द्वारा लिखित या मौखिक रूप से अनुरोध किये जाने पर इस अधिनियम के अधीन अपील दायर करने की विहित अवधि के लिए ऐसी सजा के प्र्रवत्तान को स्थगित कर सकेगी। ग्राम कचहरी या उसकी न्यायपीठ द्वारा पारित आदेश की प्रति आदेश पारित किए जाने की तारीख से एक सप्ताह के भीतर, इस प्रयोजनार्थ विहित शीति से पक्षकारों को मुफ्त उपलब्ध कराई जायेगी।
घारा-109 सरपंच की दाण्डिक शक्तियाँ-
(1) जब किसी सरपंच को ऐसा विश्वास हो जाय कि लोक प्रशान्ति में बाधा आने वाली है या शांति भंग होने की संभावना हे तो वह तुरन्त रोक थाम के लिए विधि संगत उपाय करेगा और उक्त तथ्यों का जिक्र करते हुए विहित रीति से तामिल कर, किसी व्याक्ति को ऐसा कार्य न करने तथा उसके कब्जा वाला सम्पति के संबंध में कार्रवाई के संबंध में कारवाई करने का निर्देश देगा।
(iii) सरपंच, उपधारा-(i) के अधीन आदेश निर्गत करतें हीं कार्यवाहियाँ अनुमण्डल दण्डधिकारी को पेश करेगा जो विवाद के पक्षकारों, यदि वे चाहें को सुनने के बाद आदेश को संपुष्ट कर सकेंगे या नोटिस को प्रभावोन्मुक्त कर सकेगा।(iii) उपधारा (1) के अधीन पारित आदेश तीस दिनों तक प्रवृत रहेगा। (iv) उपधारा (1) के अधीन पारित आदेश को संबध्द स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा तत्परता से लागू किया जायेगा।
विषय वस्तु : ग्राम कचहरी के सिविल क्षेत्राधिकार ( बिहार पंचायत राज अधिनियम की धारा 110 एव 111)
धारा-110 ग्राम कचहरी की न्यायपीठ की अनन्य सिविल अधिकारिता -उपधारा (1) बंगाल आगरा और असम सिविल न्यायालय अधिनियम 1887, (13, 1887), प्रान्तीय लधु हेतुक न्यायालय अधिनियम, 1887 (89, 1887) और सिविल प्रकिया संहिता, 1908, (5, 1908) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी तथा इस अधिनियिम के प्रावधानाें के अध्याधीन, ग्राम कचहरी की न्यायापीठ की निम्निलिखित श्रेणी के वादों को सुनने और अवधारित करने का अधिकार होगा, अर्थात्-
(क) जब कि ग्राम कचहरी में दर्ज किये गये मुकदमों का मूल्य दस हजार रूपये से अधिक ने हो यथा।
¼i) संविदा पर देय धन के लिए वाद:
¼ii) चल सम्पत्तिा या ऐसी सम्पति के मूल्य की वसूली के लिए वाद:
¼iii) लगान की वसूली के वाद: और
(iv) चल सम्पत्तिा को सदोष ग्रहन करने या उसे क्षति पहँचाने के चलते प्रतिकार के लिए, या पशु-अतिचार से क्षतिग्रस्त सम्पत्तिा के लिए वाद।
(ख) वाद बंटवारा के सभी मामलों, सिवाय उन वादों के जहाँ विधि का जटिल प्रश्न या टाइटिल अंतर्ग्रस्त हो:।
किन्तु, जहाँ ग्राम कचहरी का विचार में किसी बँटवारा के किसी वाद में विधि का जटिल प्रश्न या टाईटिल का मामला सन्निहित है तो ग्राम कचहरी ऐसे वाद को समक्ष अधिकारता वाले न्यायालय को अन्तरित कर देगी: परन्तु खण्ड (क) एवं खण्ड (ख) के अधीन उपर्युक्त प्रकार के वाद के पक्षकार, वाद के मूल्य को ध्यान में रखे बिना, लिखित करार द्वारा निर्णय के लिए न्यायपीठ को वाद निर्दिष्ट कर सकेगा और न्यायपीठ को काई नियमों के अध्याधीन उक्त वाद की सुनवाई करने ओर उसकी अवधारणा करने की अधिकारिता होगी।
घारा-111 ग्राम कचहरी के न्यायपीठ नीचे लिखे गये वादों की सुनवाई नहीं करेगी- धारा 110 में अन्तर्विष्ट से किसी प्रतिकूल वाद के होते हुए भी कोई भी वाद ग्राम कचहरी की किसी न्यायपीठ के द्वारा स्वीकार नहीं किया जायेगा।
(क) साझेदारी लेखा, अतिशेष पर,
(ख) निर्वसीयतता के अधीन शेयर या शेयर के भाग के लिए वसीयत के अधीन वसीयत संपदा या संपदा के भाग के लिए, या
(ग) केन्द्र या राज्य सरकार या अपनी पदीय हैसियम से ऐसे सरकारी सेवकों द्वारा या उसके विरूद, या
(घ) नाबलिग या विकृत चित के व्यक्तियों द्वारा या उसके विरूध्द, या
(ड़) अचल सम्पत्ति के लगान के निर्धारण, वृद्धि कमी, उपशमन या प्रभाजन के लिए या
(च) पुरोबंध द्वारा बंधक लागू करने के लिए अचल सम्पति के बंधक का या बंधक के मोचन के लिए सम्पत्ति की बिक्री: या
(छ) अचल सम्पत्ति में अधिकार, टाइटील और हित की आवधारण के लिए,
(ज) किसी ऐसे मामले के सम्बन्ध में जिसमें इस अधिनियम के प्रवृत हाने के पूर्व समक्ष अधिकारिता वाले किसी न्यायालय में कार्यवाही लंबित हो, या
(झ) ग्राम पंचायत में मुखिया, या कार्यपालिका समिति के किसी सदस्य, सरपंच या पंच के विरूद्ध वाद आता हो।
विषय वस्तु:- ग्राम कचहरी के दिवानी मामलों का दायर किा जाना एवं ट्रायल ( ग्राम कचहरी संचालन नियामावली, 2007 का नियम 20-28 एवं ( बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा 101, 102, 103, एवं 110)
धारा-101: दिवानी वादों का दायर किया जाना एवं सुनवाई- इस अधिनियम के अधीन दायर किया जानेवाला मामला या वाद सरपंच के समक्ष ही दायर किया जायेगा और जहाँ सरपंच की सेवा उपलब्ध नहीं रहने पर उक्त किसी भी प्रकार का मामला या वाद उपसरपंच के समक्ष दायर किया जायेगा और उक्त मामला या वाद का सुनवाई ग्राम कचही के ऐसे न्यायपीठ के द्वारा सुन जायेगा जिसमें सरपंच द्वारा विहित रीति से चुना गया दो पंच, एवं पक्षकारों द्वारा नामित दो पंच जो कि ग्राम कचहरी के पंच होगें एवं सरपंच स्वयं भी होगे परन्तु-
(i) यदि कोई पक्षकर यथाविहित समय के भीतर किसी पंच का नाम नामित नहीं करते होत तो सरपंच या उनके अनुपस्थिति में उपसरपंच ग्राम कचहरी के पंचों में पंच नामित कर देगा।
(ii) यदि किसी वाद या मामला की कार्यवाहियों में, भाग लेने से सरपंच निवारित हो जाए तो उस सरपंच को अथवा यदि वह भी सरपंच की राय में उसी प्रकार निरहिंत हो, तो अपने बीच के पंचों द्वारा अन्य पंच का चुनाव किया जायेगा और यथास्थिति उप-सरपंच या इस प्रकार चुना गया, पंच उक्त वाद या मामले के प्रजोजनार्थ सरंपच के सभी कार्यों का निर्वहन करेगा।
(iii) यदि वाद या मामले के दायर होने के बाद किन्तु अवधारणा के पहले किसी समय सरपंच के सेवा उपलब्ध नही रहे और उप-सरपंच के नाम पक्षकारों द्वारा नामित कर दिया गया हो या धारा 100 के अधीन निवारित कर दिया गया हो तो ऐसी परिस्थिति में पंचो में सबसें वरिष्ठ पंच सरपंच कार्य करेगा और,
(iv) यदि वाद दायर किये जाने के बाद तथा अवधारण के पहले किसी समय पंच की सेवाएँ उपलब्ध नहीं अथवा कार्यवाहियों में भाग लेने से धारा 100 के तहत निवारित किया गया हों, विहित समय के भीतर, यथास्थिति संबंध पक्षकार द्वारा किसी दूसरे पंच का नाम निदेशन या सरपंच द्वारा उसका चयन किया जायेगा।
(ii) उपधारा (1) के अधीन किसी वाद या मामले की सुनवाई और अवधारणा करने के प्रयोजनार्थ तीन अन्य पंचों की पूर्ति होगी जिसमें सरपंच और संबंधित पक्षों द्वारा नामित दो पंच शामिल रहेंगें।
धारा 102: विवादों की सौहार्दपूर्ण समझौता कराने के लिए ग्राम कचहरी की न्यायपीठ कार् कत्ताव्य-ग्राम कचहरी न्यायपीठ इस अधिनियम के अधीन वादों की सुनवाई करते समय या मामलों का विचार करते समय, पक्षकारों को यथोचित रीति से नोटिस देने के बाद पक्षकारों को समक्षा बुक्षाकर दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण रूप से समझौत कराने का प्रयास करेगी और इस प्रयोजनार्थ, न्यायपीठ यथोचित रीति से तुरन्त, वाद या मामले की सही समाधान का अन्वेंषण करेगी तथा ऐसी करने में सभी विधिपूर्ण बातें करेगी जो वह उचित समझे और पक्षों को सौहर्दपूर्ण समक्षौत के लिए उत्प्रेरित करने के प्रयोजनार्थ उचित समझो और जहाँ ऐसा समक्षौता हो जाय वहाँ न्यायपीठ उसे अभिलिखित करेगी या उसके बाद निर्णय देगी।
धारा 102:- सौहार्दपूर्ण समझौता न होने की दशा में ग्राम कचहरी न्यायपीठ द्वारा विवाद की जाँच करना एव उसपर निर्णय देना- जहाँ ग्राम कचहरी का कोई न्यायपीठ द्वारा सौहार्दपूर्ण समझौता नहीं हो सका तो न्यायपीठ उक्त मामले की जाँच करेगी जैसा उचित समक्षती हो वैसी साक्ष्य लेगी और अपना निर्णय देगी यदि उक्त मामले के निर्णय में सदस्यों के बीच किसी तरह की असहमति होता है जो वैसी परिस्थिति में बहुमत का निर्णय ही अभिभावी होगा। परन्तु, इसमें इसके पूर्व अन्तर्विष्ट कोइ भी बात न्यायपीठ के किसी सदस्य को ऐसे निर्णय के विरूद अपनी विमति टिप्पणी अभिलिखित करने से रोकने वाले बात नहीं समक्षी जायेगी।
धारा 104:- ग्राम कचहरी न्यायपीठ वाली अपनायी जाने वाली प्रक्रिया- इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन सरकार द्वारा बदले गये किसी भी नियम या निर्देंशों के अधीन ग्राम कचहरी की किसी न्यायपीठ द्वारा अपनायी जाने वाली प्रकिया ऐसा होगी जो वह उचित तथा सुविधाजनक समझे और न्यायपीठ इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन विहित प्रकिया से भिन्न किन्हीं अन्य साक्ष्य विधियों या प्रकिया का पालन के लिए बाध्य नहीं होगी।
धारा 110:- ग्राम कचहरी की न्यायपीठ की विशिष्ट सिविल अधिकारिता- उपधारा (1) बंगाल, आगरा और असम सिविल न्यायलय अधिनियम 1887 (13, 1883), प्रान्तीय लधु हेतु न्यायालय अधिनियम, 1887 (9, 1887) और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (5, 1908) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी तथा इस अधिनियम के प्रावधानों के अध्याधीन ग्राम कचहरी की न्यायापीठ को निम्नलिखित श्रेणी के वादों को सुनने और अवधारित करने की अधिकार होगा, अर्थात्
(क) जबकि ग्राम कचहरी न्यायपीठ के समक्ष दर्ज किये गये मुकदमों का मूल्य दस हजार रूपये से अधिक न हो-
¼ i) संविदा पर देय धन के लिए वाद:
(ii) चल सम्पत्तिा या ऐसी सम्पत्तिा के मूल्य की वसूली के वाद:
(iii) लगान वसूली के लिए वाद, और
(iv) चल सम्पत्तिा को सदोष ग्रहण करने या उसे क्षति पहँचाने के वास्ते प्रतिकार के लिए, या पशु-अतियार से क्षति ग्रस्त सम्पति के लिए वाद:
(ख) वाद बटवारा के सभी मामला सिवाय एन वादों के जहाँ विधि का जटिल प्रश्न या टाईटिल अन्तर्ग्रस्त हो:
किन्तु जहाँ ग्राम कचहरी न्यायपीठ के विचार में किसी बँटवारा के किसी वाद में विधि का जटील प्रश्न या टाईटली का मामला सन्निहित है तो ग्राम कचहरी न्यायपीठ ऐसे वाद को समक्ष अधिकारिता वाले न्यायालय को अन्तरित कर देगी।
परन्तु खण्ड (क) एवं खण्ड के अधीन उपर्युक्त प्रकार के वाद के पक्षकार वाद के मूल्य को ध्यान में रखे बिना, लिखित करार द्वारा निर्णय के लिए न्यायपीठ के समक्ष वाद निर्दिष्ट कर सकोगा और न्यायपीठ की कोर्ट फीस और अन्य मामलें के सम्बन्ध में, इस अधिनियम के अधीन, यथा विहित नियमों के अध्याधीन उक्त वाद की सुनवाई करने और उसकी अवधारणा करने की अधिकारिता होगी।
नियम 20 :- सरपंच, अधिनियम की धारा 110 के उपबंधों के अधीन उन मुकदमों को ही स्वीकार करेगा जो कि मुकदमा चलने की पूरा या आंशिक काम ग्राम कचहरी क क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमा के अन्दर हुआ है या प्रतिवादी (यानी जिसपर मुकदमा दर्ज किया गया) वह उस कार्य क्षेत्र के अन्दर रहता हो या कोई कारोबार, व्यवसाय किये हो या करता हो,
नियम 21 :- उपनियम (1)- पंचायत अधिनियम के अधीन कोई भी (सूट) वाद या मुकदमा वादी द्वारा लिखित आवेदन देकर ही दायर किया जायेगा जो आवेदन वादी द्वारा दायर किया जायेगा उस वाद में पक्षों का नाम, जिस सम्पत्तिा का (मुकदमा) वाद किया जा रहा हो उसका मुल्य, वैसी बातें जिस मुख्य बातों पर उक्त वाद निर्भर करता हो, उसका संक्षिप्त विवरण तथा जिन सुविधाओं के लिए वाद लाया गया है उन बातों का उल्लेख अनिवार्य रूप से लिखित होगा।
उपनियम (2)- इस नियम के अधीन कोई भी आवेदन स्वीकार करने के पूर्व ग्राम कचहरी का सचिव वाद की रकम के अनुसार दस रूपया दर या उसके किसी अंश के लिए एक रूपये की दर से नकद फीस वादी द्वारा वसूल करेगा।
नियम 22 :- सरपंच के पास जैसे ही वाद दायर किया जाय वाह इस बात का निर्णय करेगा कि उक्त वाद का विचारण (ट्रायल) इस अधिनियम में उल्लेखित न्यायपीठ द्वारा होगा या नहीं। यदि सरपंच के द्वारा यह समाधान हो जाय कि उक्त वाद का विचारण ग्राम कचहरी न्यायपीठ के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है वह वादी को आवेदन वापस कर देगा और उसे यह बात बता देगा कि उक्त वाद के लिए सही क्षेत्राधिकार वाला न्यायालय कौन सा है और उक्त बात का उल्लेख ग्राम कचहरी न्यायपीठ आवेदन पर कर देगा। परन्तु वादी का आवेदन वापस करने के आदेश देने के पहले आवेदक को अपना बात करने का, सुनाने का यूक्ति यूक्त अवसर दिया जायेगा।
नियम 23 :- नियम (31) के अधीन वादी आवेदन के अलावे उतनी प्रतियाँ के साथ आवेदन पद न्यायपीठ के समक्ष प्रस्तुत करेगा जितना की उक्तवाद प्रतिवादी (डिफोन्उन्ट) होगा।
नियम 24 :- यदि सरपंच नियम-22 के अनुसार आवेदन आवेदक को वापस न करें और प्रतिवादी या प्रतिवादीगण न्यायपीठ के समक्ष उपस्थित नहीं हो तो वह जितने उक्त वाद में प्रतिवादी के अनुसार उतनी हीं प्रतियों के साथ उसके नाम से सम्मन जारी करेगा और उक्त सम्मन में यह लिखा जायेगा कि वह निश्चित तिथि को नित समय पर ग्राम-कचहरी में हाजिर होकर अपना कारण बताये कि (शोकौज) की वादी का आवेदन का दावा क्यों नहीं न्यायपीठ द्वारा मंजूर कर ली जाय।
नियम 25 :- यदि नियम 24 के अधीन जारी सम्मन का पालन करते हुए प्रतिवादी अधिनियम की धारा 117 के अधीन स्वंय या अपने प्रधिकृत व्यक्ति के जरिए ग्राम-कचहरी में हाजिर न हो तो ऐसी अवस्था में न्यायपीठ उक्त वाद का सुनवाई एक तरफा (एक पक्षीय) कर सकती है।
नियम 26 :- यदि न्यायपीठ के समक्ष कोई दस्तावेज (कागज-पत्र) वादी या प्रतिवादी के द्वारा पेश किया जाता है तो पेश करने वाला उक्त दस्तावेज का नकल देकर उस मुल दस्तावेज को वापस ले सकता है वर्षों कि उक्त नकल का मिलान मुख्य दस्तावेज से मिलान करने के बाद सरपंच यह समझ ले कि वास्तव में उक्त नकल मूल दस्तावेज का सही प्रतिलिपि एवं हुबहू है।
नियम 27 :- उपनियम-(1)- ग्राम कचहरी न्यायपीठ बाद के सम्बन्ध में पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से डिक्री देने का निर्णया करें तो उस निर्णय में अग्रलिखित बातों का ब्योरा अवश्य देगा:
(क) वाद से संबंधित पक्षों का नाम, पिता का नाम और पता
(ख) दावा और दावा का विवरण
(ग) वाद में खर्च सहित रकम की डिक्री दी गई हो तो वह रकम या कोई अन्य रिलिफ जो वाद में दी गई है और मजूर क गई ब्याज की रकम उपनियम-(2) यदि न्यायापीठ कुछ रूपये पैसे चुकाने का या कोई चल सम्पति प्रदान करने का आदेश दे तो वह न्यायपीठ अपने फैसले में एक तारीख निश्चित कर देगी और जब उक्त रकम या चल सम्पति न्यायपीठ के समक्ष उक्त पक्ष को चुकाई या दी जायेगी तो निर्णय के अनुसार जो इसका पाने का हकदार है और इस तरह का भुगतान या चल सम्पत्तिा प्रदान करने की बात न्यायपीठ अपने उक्त (बेंच) न्यायपीठ के आदेश पत्र में अंकित कर देगी तथा जो व्याक्ति उक्त राशि या चल सम्पत्तिा का भुगतान पायेगा वह प्राप्ति के लिए एक रसीद लिख देगा जो कि वाद के मूल रिकार्ड के साथ सुरक्षित रखी जायेगी।
उपनियम-(i) यदि इस भुगतान या प्रदान किस्तों में किया जाने वाला हो तो फैसले में हर किश्म क तारीख निश्चिम कर दी जायेगी।
उपनियम-(ii) रूपये की दावे की दशा में, ग्राम कचहरी का न्यायापीठ के फैसले में छ: प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर से लिखी जा सकेगी।
और जिस तारीख की उस रकम का दावा दायर किया गया हो, उसक तारीख से लेकर डिक्री की रकम वसूल होने के तारीख तक ऐसी ब्याज निर्णात ऋणी ( जनमेन्ट डेटर ) से वसूल किया जायेगा।
घारा 28:- यदि न्यायापीठ के समाधान के अनुरूप यह साबित हो जाये कि किसी वाद की पूर्णत: या अंशत: किसी कानूनी करार या समझौते से तय कर लिया गया हे अथवा प्रतिवादी अगर वाद सें संबंधित रकम पूर्णत: या अंशत वादी को चुका दिया है तो न्यायापीठ ऐसे करार, समझौता या भुगतान को लिख लेगा और जहाँ तक वाद के संबंध रहेगा, वहाँ तक ऊपर बताए गए करार आदि के अनुसार ही डिक्री का आदेश पारित करेगा।
विषय वस्तु : ग्राम कचहरी द्वारा पारित आदेश/डिक्री का कार्यान्वयन ( धारा 119 नियमावली 29, 30 एवं 31)
धारा:- 119 डिक्रियों एवं आदेशें की निष्पादन और मुकदमाओं में अभियुक्त को गिरफ्तारी किस प्रकार ग्राम कचहरी द्वारा की जायेगी संबंधित प्रक्रिया
1 यदि ग्राम कचहरी के द्वारा गठित न्यायपीठ किसी वाद में कचहरी द्वारा पारित डिक्री को निष्पादन में असमर्थ हो, तो न्यायपीठ ऐसी डिक्रियों को निष्पादन के लिए मुंसिफ के पास भेज देगी जो उस डिक्री का निष्पादन इस तरह करेगा जैसे कि उक्त डिक्री का निष्पादन उक्त मुंशिफ के द्वारा ही पारित किया गया है।
2 यदि ग्राम कचहरी का न्यायपीठ किसी मामलें में अपने द्वारा आरोपित जुर्माना, किसी कारण से वसूल करने में असमर्थ समझता हो तो वह एसे जुर्माना, को वसूल करने के लिए अपना अधिरोपित करने वाला आदेश का मुख्य/अपर/अवर/ न्यायाधीश दण्डघिकारी के पास निष्पादन के लिए भेज देगा, जो व्यक्ति उक्त जुर्माना से संबंधित हो जिसपर न्यायपीठ के द्वारा जार्माना दिया गया हो उसके विरूद्ध उक्त जुर्माना को वसूल करेगा मानो कि वह आदेश दण्डाधिकारी ने हीं पारित किया गया है।
3 यदि ग्राम कचहरी का न्यायपीठ, किसी मामले के विचारण करने के लिए किसी अभियुक्त की उपस्थिति का होना अनिवार्य समझता हो, लेकिन वह उक्त कथित अभियुक्त का उपस्थिति करने में अपने को असमर्थ समझता हो तो वह (यानी न्यायपीठ) उक्त अभियुक्त का सही पता ठिकना को लिखित करते हुए अभियुक्त को पकड़ने के लिए जमानती वारंट मुख्य/अपर/अवर न्यायिक दण्डाधिकारी के पास भेज देगा, जो कि वारंट पर प्रतिहस्ताक्षर कर उसे थाना प्रभारी के पास भेज देगा, जिसके अधिकार क्षेत्र में कथित अभियुक्त के रहने का पता है और उक्त पदाधिकारी वारंट का निष्पदान करेगा और अभियुक्त की उक्त मुकदमा में विचारण के समय न्यायपीठ के समक्ष पेशी के लिए उपाय करेगा।
नियम 29: (1) नियम 27 के उपनियम (2) के अनुसार विनिश्चिम की गई तारीख को यदि डिक्री की रकम न चुकाई जाए तो या सम्पत्तिा जैसा भी हो प्रदान न की जाय तो डिक्री पाने वाले पार्टी (व्यक्ति) सरपंच के समक्ष प्रार्थना करते हुए आवेदन देगा कि जारी की गई डिक्री का इजराय की जाय।
नियम 30: यदि ग्राम कचहरी का न्यायपीठ किसी वाद में अपने द्वारा पारित डिक्री को निष्पादन करने में असमर्थ समझे, तो न्यायपीठ ऐसी डिक्रीयों के निस्पादनार्थ मुंसिफ के पास भेज देगा जो उस डिक्री का निस्पादन इस तरह से करेगा मानो कि वह डिक्री मुशिफ के द्वारा पारित है।
नियम 31: जब कभी किसी अभियुक्त को जुर्माना चुकाने की सजा दी जाय तो सरपंच उस जुर्माना की वसूली के लिए कार्रवाइ करेगा, यदि ग्राम कचहरी न्यायपीठ किसी मामलें में अपने द्वारा पारित जुर्माना, किसी कारणवश वसूल करने में असमर्थ समझता हो या असमर्थ हो जाये तो न्यायपीठ ऐसा जुर्माना अधिरोपति करने वाला आदेश फारम 8 में मुख्य/अपर/अवर न्यायिक दण्डाधिकार के पास निस्पादन को भेज देगा जो संबध्द व्यक्ति जिसपर जुर्माना का आदेश पारित किया गया है । इससे जुर्माना इस प्रकार से वसूल करेगा मानो वह आदेश विवादित मामलें में उक्त दण्डधिकारी द्वारा ही पारित किया गया है।
Registers Maintain by Gram Katchahary- ग्राम कचहरी द्वारा बहियों की देखभाल करना अथवा बनाये रखना।
विषय वस्तु: ग्राम कचहरी में क्रिमनल मामलों का दायर किया जाना एवं ट्रायल ( पंचायत राज अधिनियम 2006 के धारा 101, 102, 103, 104, एवं 105 तथा ग्राम कचहरी संचालन नियमावली 2007 का नियम 32-40)
धारा 101 फौजदारी वाद या मामला को दायर करना और उसकी सुनवाई। ( नोट उक्त धारा के बारे में आपलोगों की प्रथम दिन ही 2 बजे अपराह्न से 4 बजे उपराह्न के बीच विस्तृत रूप से जानकारी दी गई है।
धारा 102 नोट इसके बारे प्रथम दिन जानकारी दी गई है।
धारा 103 नोट इसके बारे में प्रथम दि नही जानकारी
धारा 104 नोट इसके बारे में भी आपलोगों को प्रथम दिन 2 बजे से 4 बजे के बीच विस्तृत से व्याख्या की गयी है।
धारा 105 निर्णय का रूप-ग्राम कचहरी की किसी न्यायपीठ का निर्णय लिखित रूप में होगा और उस पर न्यायपीठ के सभी सदस्यों का हस्ताक्षर होगा। उसमें इस निमित सरकार द्वारा बनाये गये नियमों द्वारा यथाविहित विशिष्टयाँ अन्तर्विष्ट होगी:
परन्तु न्यायपीठ के किसी सदस्य द्वारा निर्णय पर हस्ताक्षर नहीं करने की विधि मनयता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
नियम: 32 अधिनियम धारा 106 के अध्याधीन दायर किया जाने वाला कई मामला सरपंच के पास लिखकर दायर किया जाएगा और जहाँ सरपंच की सेवाएँ उपलब्ध न हो वहाँ उप-सरपंच के समक्ष दायर किया जायेगा।
नियम 33 नियम 32 के अधीन अर्जी देने के समय कोई व्याक्ति ग्राम -कचहरी के सचिव के पास एक सौ रूपये की नकद फीस जमा करेगा।
नियम 34 :- यदि अर्जी लिखित रूप से दी गई हो तो यथा स्थिति सरपंच अर्जीदार की शपथ दिलाकर उसका परीक्षण अविलम्ब करेगा और शपथ लेकर निष्ठापूर्वक वह अपने बयान में कुछ कहेगा उसका सारांश-लिखित रूप में अर्जी की पीठ पर दर्ज कर दिया जायेगा जो ऐसे मुकदमें के लिए खोला जाय परन्तु दोनों में से किसी स्थिति मैं शपथ लेकर या निष्ठापूर्वक अर्जीदार ने जो ब्यान दिया हो उसे पढ़कर सुनाए जाने और समझा जाने के बाद वह उस ब्यान के नीचे अपना हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लगा देगा।
नियम 35 :- यदि नियम 32 के अधीन अर्जीदार द्वारा शपथ लेकर या निष्ठापूर्वक किए गए ब्यान पर सरपंच की यह राय हो कि (क) उस बयान से किसी अपराध का पता नही चलता है अथवा अगर अपराध का पता भी चलता है तो ऐसे अपराध का जो ग्राम कचहरी की न्यायपीठ के क्षेत्राधिकार के बाहर हो तो ऐसी अर्जी को वह तुरंत खारिज कर देगा और अर्जीदार को अपने आदेश की सूचना तुरंत दे देगा। (ख) यदि अर्जीदार द्वारा दिये गये बयान से ऐसा अपराध का होना मालूम पड़े जो ग्राम कचहरी के न्यायपीठ द्वारा संज्ञेय (Cognizable) है तो अपराध का संज्ञान (कांग्निजेंस) लेगा और उसके बाद सबसे पहले वह मुद्दालय के नाम सम्मन जारी करेगा जिसमें यह बताया रहेगा कि उस पर किस अपराध का आरोप बनता है या लगाया गया है उस सम्मन में दर्शा गयी तारीख एवं नियत समय पर ग्राम कचहरी की न्यायपीठ के समक्ष उपस्थित रहेगा यदि उक्त नियम समय तारीख तक सम्मन तामिल न हो तो उसे फिर मानय कर दिया जायेगा।
नियम 36 :- ग्राम कचहरी नयायपीठ द्वारा विचारण किए जाने वाले सभी प्रकार के फौजीदारी मामलों में ग्राम कचहरी न्यायपीठ किसी अभियुक्त की उपस्थिति उसी विहित रीति से सुनिश्चित करायेगी जैसा कि नियम 13 में निर्धारित है।
नियम 37 :- जब मुदालय ग्राम कचहरी के समक्ष हाजिर होगा या अन्य विहित रीति से हाजिर किया जायेगा तो मुद्दालय अपने ऊपर लगाये गये अपराधों के संबंध में अपनी इच्छानुसार बयान न्यायपीठ के समक्ष देगा।
नियम 38 :- यदि धारा 102 की अपेक्षानुसार ग्राम कचहरी के न्यायपीठ दोने पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण समझौता कराने में असफल हो जाय और मुद्दालय कोई बयान दिया हो तो उसे लिख लिया जायेगा। अगर मुद्दालय अपने ऊपर अपराध न्यायपीठ के द्वारा संज्ञेय है तो न्यायपीठ इस अपराध के अनुसार अपना निर्णय लिखित करेगी और न्यायपीठ के सदस्यों के बीच असहमति होने पर बहुमत का निर्णय ही मान्य होगा।
नियम 39 :-
(i) यदि पूर्वगामी नियम के अनुसार न्यायपीठ मुदालय को सजा न दे या मुदालय अपना अपराध कबूल न करे
तो न्यायपीठ मुदई की बातों की सुनवाई कर देगी और मुकदमें में जो कुछ भी साक्ष्य पेश करेगा उसे ले लेने के बाद न्यायपीठ मुदालय की सूनवाई करेगी तथा मुदालय अपनी सफाई मैं जो कुछ भी कहेगा प्रमाण पेश करेगा। उसे न्यायपीठ मुद्दालय के प्राप्त कर लेगा।
(ii) यदि न्यायपीठ ठीक समझे तो मुदई या मुदालय के आवेदन करने पर किसी गवाह का नाम इस आशय का सम्मन में बताई तारीख को ग्राम कचहरी में हाजिर हो और यदि कोई प्रमाण कागजात या और अन्य चीज हो तिो उसे न्यायपीठ के समक्ष प्रस्तुत करें।
(iii) इस तरह के आवेदन पर किसी गवाह पर सम्मन करने के पूर्व न्यायपीठ यह आपेक्षा करेगी कि प्रति सम्मन दो (2) रूपये की दर से तलवाना-शुल्क (प्रोसेस-फीस) जमा कर करवाा ले।
नियम 40 :-
(i) नियम 39 में बताये गये साक्ष्य प्राप्त करने के बाद या न्यायपीठ अपनी इच्छानुसार जो कुछ भी साक्ष्य पक्षों से लेना चाहती हो, उसे लेने के बाद और मुदालय की जाँच कर लेने के बाद न्यायपीठ अगर इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि मुदालय दोषी नहीं तो वह धारा 103 की रीति से अपना निर्णय लिखित करेगी।
(ii) यदि न्यायपीठ मुदालय को दोषी पाएगी तो वह उससे सिध्द दोष करार देगी और अधिनियम की धारा 107 के अध्याधीन अपराध की विधि सम्मत उसे सजा देगी, लेकिन ग्राम कचहरी की कोई पीठ, साधारण अथवा सख्त किसी कारावास की सजा नहीं देगी। उपराधी को ऐसे उपराध के लिए जुर्माना कर सकती है जिसकी की जुर्माना राशि एक हजार से अधिक नहीं होगी।
दूसरा दिन: 2 अपराह्न से 3 अपराह्न
विषय: ग्राम कचहरी के अपीलय क्षेत्राधिकार (बिहार पंचायत अधिनियम की धारा 112 तथा ग्राम कचहरी संचालन नियमावली 2007 का नियम 41-47)
घारा 112 अपील-
(1) ग्राम कचहरी न्यायपीठ के द्वारा किसी आदेश या निर्णय विरूध्द अपील ऐसे आदेश या निर्णय के पारित होने के तीस (30) दिन के द्वारा अक्त अपील की सुनवाई के लिए पूर्ण न्यायपीठ के गठन के लिए सात पंचों का होना अनिवार्य होगा।
(2) उप-धारा (i) के अधीन अपील की सुनवाई के लिए पूर्ण न्यायपीठ के गठन के लिए सात पंचों का होना अनिवार्य होगा।
(3) ग्राम कचहरी के पूर्ण पीठ के आदेश या निर्णय के विरूध्द अपील तीस दिनों के अन्दर, दिवानी मुकदमा में अवर न्यायाधीश के समक्ष और फौजदारी मामला में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के समक्ष दायर किया जायेगा।
(4) अपील में जिस आदेश को चुनौती दी गई हो विहित रीति से अपील के अंतिम निष्पादन तक लागू नहीं किया जायेगा।
(5) ग्राम कचहरी की पूर्ण न्यायपीठ द्वारा पारित आदेश के प्रति ऐसा आदेश पारित किये जाने की तारीख से एक सप्ताह के अन्दर अपील के विहित रीति से पक्षों को मुफ्त में ही दी जायेगी।
नियम 41 :- ग्राम कचहरी के न्यायपीठ के किसी आदेश या निर्णय के विरूध्द अधिनियम की धारा 112 के अधीन किए जाने वाले अपील ऐसे आदेश पारित किये जाने के तीस दिन के अंदर ग्राम कचहरी के पूर्ण न्यायपीठ के समक्ष दरयर की जायेगी। जिसके गठन के लिए सात पंचों का होना अनिवार्य होगी।
नियम 42 :- यदि किसी दीवानी मुकदमा (सूट) में बेंच द्वारा किये गये फैसले के विरूध्द कोई अपील की जाती हो तो वह मुकदमा जितने रूपया का हो उसके हिसाब से हर दस रूपये उसके किसी अंश के लिए रूपये दर से नकद फीस जबतक ग्राम कचहरी के सचिव के पास पक्ष द्वारा जो अपील कर रहा है के द्वारा नकद जमा नहीं किया जाय अथवा अपील अगर फौजीदारी में न्यायपीठ द्वारा दिये गये फैसले के विरूध्द हो तो उसके लिए जब तक दस रूपये की नकद राशि न्यायापीठ के समक्ष जमा अपीलार्थी द्वारा नकदी जाय तब तक अपील मंजूर नहीं की जायेगी। लेकिन फौजीदारी मुकदमा में सरपंच उपयुक्त मामलों में गरीबी के आधार पर या अन्य कारणों का उल्लेख आदेश पद में कर-कर अपील करने वाला यानी अपीलार्थ की उक्त अपील का शुल्क चुकाने से बरी कर सकता है।
नियम 43 :-जब कोई पक्ष अपील का संलेख (मेमोरण्डम) दायर करे और उसके लिए आवश्यक फीस चुका देता है तब सरपंच उत्तरवादी (विपक्षी) की तथा ग्राम कचहरी के सभी पंचो को इस आशय की सूचना देगा कि वे सूचना में बताई गई तारीख एवं निश्चित समय और स्थान पर पूर्ण न्याय पीठ की बैठक में उपस्थिति होवें। उक्त बैठक की तारीख साधारणतया अपील दायर करने के 15 (पन्द्रह) दिन के अन्दर ही रखी जायेगी।
नियम 44 :-
(1) सुनवाई कि नियत तारीख को पूर्ण नयायपीठ उक्त मुकदमों में सभी अभिलेखों की जाँच करेगी, पक्षों की बात सुनने के बाद सही न्याय करने के लिए जो उपयुक्त एवं आवश्यक समझेगी विधि संगत करेगी और उसके बाद नयायपीठ द्वारा दिये गये आदेश को मान लेगी या आवश्यक समझने पर फेर-बदल अथवा उसको रद्द देगी या ऐसा आदेश देगी जो मुकदमा की स्थिति को देखते हुए न्याय संगत और सुविधानुसार उचित समझेगी।
(2) पूर्ण न्यायपीठ का फैसला बैठक में भाग लेकर अपना-अपना विचार व्यक्त कर पंचों के बहुमत के आधार पर होगा।
(3) जो पंच अन्य पंच/पंचों की राय से सहमत नहीं होंगे वे अपने विचार (टिप्पणी) देंगे।
(4) पूर्ण न्यायपीठ के जितने भी पंच फैसले से सहमत होंगे, वे उस पूर्ण न्यायपीठ के उक्त फैसले पर अपना-अपना हस्ताक्षर बना देगें जहाँ पर विमति-टिप्पणी (नोट ऑंफ डिसेंट) दी जायेगी वहाँ के उस पंच या पंचों के हस्ताक्षर कराकर जो कि उक्त फैसले से सहमत न हो, विमति टिप्पणी लिख दी जायेगी।
नियम 45 :-किसी अपील के मंजूरी के बाद (निपटरा) निष्पादन होने तक सरपंच उक्त कारणों का उल्लेख कर यह आदेश देगा कि डिक्री का इजराय या सजा या जिस आदेश के खिलाफ अपील की गई हो उसका आदेश लागू नहीं किया जाय।
नियम 46 :-किसी अपील के दायर होने की तिथि से 1 माह के अन्दर ही उसका निष्पादन कर दिया जायेगा। (2) यदि उप नियम (1) में बताई गई अवधि के अन्दर यहद अपील का निष्परादन नहीं किया जा सका तो सरपंच विलम्ब होने का कारण निपटारा संबंधी अंतिम आदेश में अंकित कर देगा।
नियम 47 :-
(i) जब कभी सरपंच को यह विश्सास हो जाय कि शान्ति भंग होने वाली है या लोक प्रशांति में बाधा पड़ने वाला है तथा उसको रोकने के लिए कोई उपाय का होना, तुरंत अनिवार्य है तो वह ऐसे मामले किसी व्यक्ति से कह समझता है कि अपनी किसी खास हरकत न करे या किसी खास व्यक्ति को किसी कार्य विशेष से प्रवारित रहने या उसके प्रबंध या कब्जे के अधीन किसी सम्पति के कारवाई करने का निर्देश देगा।
(ii) सरपंच द्वारा दिया गया आदेश दो प्रति मैं रहेगा और उसपर वह अपना हस्ताक्षर करेगा तथा ग्राम कचहरी की मुहर लगाकर उससे संबंधित व्यक्ति को यथा संभव नियम 10 से 12 में बताई गई विधि से तामील करने के लिए भेज देगा।
विषय वस्तु : प्रक्रियाओं संबंधी आवश्यक जानकारी यथा सम्मन का निर्गन होना एवं तामीला
( नियम 10-12) बेलेबूल वारंट का निर्गत होना ( नियमं-13 ) सूट का समय तालिका
( नियम-141)। स्थानीय निरीक्षण (नियम-15) न्यायपीछ का गछन ( नियम 18 एवं 19) बेल बाँण्ड एवं जमानती की जब्ती ( नियम-15)। नकल सम्बन्धी प्रावधन ( नियम-51)
नियम 10 :
(1) ग्राम कचहरी का सरपंच प्रतिवादी या अभियुक्त पर ग्राम कचहरी के सचिव द्वारा सम्मन का तामिला पूर्व में बतायाी गई विहित रीति से करायेगा।
(11) यदि नियत तारीख तक सम्मन अगर तामिल नहीं हाता है तो और तामील होना अनिवार्य समक्षा तो वह पुन: सम्मन जारी करेगा।
नियम 11:- ग्राम कचहरी द्वारा फारम 4 या 5 में स्थिति के अनुरून जारी किया गया सम्मन प्रत्येक सम्मन दो प्रति के अनुपस्थित रहने पर उपसरपंच द्वारा हस्ताक्षर कर भेजेगा और उक्त सम्मन पर ग्राम कचहरी की मुहर लगी रहेगा।
नियम 12:-
(i) यदि व्यवहारिक होगा तो बुलाये गये व्याक्ति पर सम्मन की तामिला व्यक्तिगत उसे सम्मान की कॉपी देकर कराया जायेगा।
(ii) वैसा प्रत्येक व्यक्ति, जिसपर सम्मान तामिल इस प्रकार यिका गया हो, सम्मन के दूसरी प्रति पर उसके पीठ पर सम्मन लेने वाला व्यक्ति से हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान बनवा लेगा।
(iii) यदि वह व्यक्ति जिसपर सम्मन का तामिल हुई है, सम्मन पाने के बाद रसीद देने से इंकार करता है, तो वैसी स्थिति में तामिल कराने वाला पदाधिकारी सम्मन के दूसररी प्रति वर वैसा लिख देगा और उस लिखावाट पर कम से कम एक गवाह से अभिप्रमाणित करवा लगा और तब उक्त सम्मन का तामिल समक्षा जायेगा।
(iv) जहाँ वह व्याक्ति जिसपर सम्मन जारी गया है, उचित परिश्रम के बाद भी नहीं मिलता है, तो उसके लिए सम्मन की प्रति उसके परिवार के किसी ऐसे व्यस्क पुरूष सदस्य के पास, जो कि संयुक्त रूप से उसके साथ निवास करता है को दे दी जायेगी तथा वह व्याक्ति उस सम्मन के दूसरे कॉपी पर अपना हस्ताक्षर बना देगा। वह व्याक्ति प्राप्ति पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर देता है यह या नहीं करता है तो तामिल करने वाला व्याक्ति पदाधिकारी उपनियम (3) की प्रकिया का अनुसरण करेगा।
(v½ यदि सम्मन की तामिल इस नियम में लिखित ढ़ग से उचित परिश्रम करने के बाद भी नहीं किया जा सका तो तामिल करने वाला पदाधिकारी सम्मन की एक प्रति को सम्मन किये गये व्यक्ति के उसके घर के किसी सही स्थल (सुगोचर) स्थान मैं जिसमें सम्मन में लिखित व्यक्ति निवास करता है, चिपका देगा तथा सम्मन के दूसरी प्रति के पीछे यानी पीठ पर अपने अनुसार लिख देगा और उक्त बात को मिलाकर कम से कम एक व्यक्ति के द्वारा गवाही बनवा लेगा और तब वह जारी सम्मन बजावता तामिल हुआ माना जायेगा।
(vi½ जहाँ किसी गाँव मैं सम्मन किया गया अगर वह ग्राम कचहरी जहाँ से सम्मन जारी किया जा रहा है के स्थानीय सीमा क्षेत्र में बाहर पड़ता है तो सरपंच उस सम्मन की दो प्रति में लिखकर उस ग्राम कचहरी के सरपंच को लिखकर भेज देगा जिसके स्थानीय सीमा क्षेत्र के अन्दर वह व्यक्ति रहता है या पाया जाता है। सरपंच जिसके पास उक्त सम्मन भेजा जाता है सह उस सम्मन की तामिल उस ढंगा से मानो वह नियम के अधीन वह अपने ढंग से अपनी सीमा क्षेत्र के अन्तर्गत करता है।
नियम 13 :- जहाँ किसी ग्राम कचहरी का न्यायपीठ किसी अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करने में असमर्थ हो जाय तो वह अभियुक्त को पकड़ने के लिए अधिनियम की धारा 119 (3) के अधीन फाराम 6 में जमानती वारंट मुख्य/अपर/अवर न्यायिक दण्डाधिकारी के पास अग्रसारित करेगा जो कि वारंट पर अपना प्रति हस्ताक्षर कर उसे उस थाना प्रभारी के पास भेज देगा जहाँ जिसके अधिकार क्षेत्र में उस अभियुक्त को रहने या पाये जाने की संभावना है और ऐसा पदाधिकरी वारंट का निष्पादन करेगा और अभ्यिुक्त को उसके विचारण के समय न्यायपीठ के समक्ष पेशी हेतु उसका सही उपाय करेगा।
नियम 14 :- प्रत्येक (सूट) वाद या मुकदमा दायर करने की तारीख से छ: माह के अन्दर उसका निष्पादन कर दिया जायेगा।
नियम 15 :- किसी वाद या कार्यवाही की जाँच के लिए सरपंच या न्यायपीठ सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक किसी भी जमीन या मकान में जा कि विवाद या कार्यवाही से संबंधित है, उस मकान या जमीन के मालिक को सूचना देकर या कारण बताकर प्रवेश कर सकती है। यदि वह जमीन या मकान महिलाओं के कब्जा में है तो उस जगह के रिवाजों के अनुसार पर्दानसीन हों, तो वहाँ से हटने के लिए उचित रूप से यूचना देगा और महिला के कब्जे में रहने वाला जमीन या मकान में प्रवेश करने के लिए नयायपीठ में एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होगा।
नियम 18 :-
(i) ग्राम कचहरी के न्यायपीठ के निर्माण के लिए संबंध पक्षकारों द्वारा नामित किए जाने वाले ग्राम-कचहरी के पंचों में से दो पंच तथा सरपंच द्वारा चुने गये दो अन्य पंच शामिल होंगे।
नयायपीठ में कम-से-कम एक महिला पंच का होना अनिवार्य होगा।
(ii) जहाँ पर एक से अधिक वादी/प्रतिवादी या अभियुक्त हो तो सभी वादी/प्रतिवादी या अभियुक्त मिलकर एक साथ पंच को नामित कर चुनेंगे। परन्तु, पंचों के उसी दल (सेट) को फिर से तब तक नहीं चुना जायेगा जब तक कि ग्राम कचहरी के सभा में आये सभी पंचों को ग्राम कचहरी के न्यायपीठ में शामिल होने का अवसर नहीं मिल जाता हो।
नियम 19 :-
(i) किसी वाद या मुकदमा दायर करने के समय दोनो पक्षकार सरपंच उप-सरपंच ( यदि सरपंच अनुपस्थित हो ) के सामने, जैसर कि उस समय स्थिति हो, उपस्थिति हो, तो वे उसी समय पंचों की सूची से पंचों को नामित कर लेगें।
(ii) यदि किसी वाद के सहवादी या सह प्रतिवादी या किसी मुकदमे के अभियुक्त या सह-अभियुक्त सरपंच या उपसरपंच ( यदि सरपंच अनुपस्थित हो ) के सामने उपस्थिति होने के समय से चौबीस घंटे के अन्दर पंचों की सूची में से किसी एक सर्वमान्य पंच के लिए नाम के लिए सहमत नहीं होती, सरपंच या उपसरपंच बेंच में सहवादियों, सह-प्रतिवादियों या सह अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व के लिए पंचों की सूची में से एक पंच को नमित (नियुक्त) कर देगा।
(iii) किसी वाद (सूट) के पक्षकार नामित करेंगे।
(क) प्रतिवादी/अभियुक्त अपनी ओर से एक पंच उसके दूसरे ही दिन उपर्स्थित होने के लिए उसका सम्मन हुआ है, उसमें चुकने पर उस पक्षकार की ओर से सरपंच या उसकी अनुपस्थिति में उप-सरपंच ग्राम कचहरी के पंचों में से एक पंच को नामित
( नियुक्त ) कर देगा।
(ख) किसी मुकदमे का वादी मुकदमा दायर करने के दिन ही एक पंच को नामित कर देगा।
(iv) यदि किसी वाद या मुकदमें का विचारण चालू होते हुए किसी समय किसी पंच की सेवा में सात दिनों की अवधि के लिए उपलब्ध नहीं हों तो या यदि किसी पंच की कार्यवाही में भाग लेने से रोक दिया जाता है तो वह दूसरे दिन दूसरा एक पंच उक्त मुकदमा के संबंधित पक्षकार द्वारा नामित कर दिया जायेगा या सरपंच उप सरपंच यथा स्थिति द्वारा चुन लिया जायेगा।
परंतु, नियम में दिये गये समय के अन्दर कोई पक्षकार पंच को नामित करने में चूक जाता है तो यथा स्थिति सरपंच, या उप सरपंच, उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार उस पारी की ओर से ग्राम कचहरी पंचों की सूची में से एक पंच को नामित कर देगा।
नियम 50 :-
(i) सरपंच या न्यायपीठ, दोनों में किसी के कहने पर पूर्वागामी नियमों के उपबंधो के अनसुरण में जो बंधपत्र लिखा गया हो उसके संतोष के अनुरूप अगर यह साबित कर दिया जाता है कि सरपंच या नयायपीठ के समक्ष अभियुक्त (मुदालय) के गवाह के हाजिर न होने के कारण बंध पत्र की राशि ग्राम-कचहरी के हक में जब्त कर ली गई है, तो सरपंच या गठित न्यायपीठ अभियुक्त (मुदायलय) या गवाह से इसका कारण बताने के लिए कह सकती है कि बंध पत्र (बेलबॉन्ड) की राशि उससे क्यों नहीं बसुला गया।
(ii) यदि अभियुक्त द्वारा या गवाह द्वारा प्रर्याप्त कारण न दिखाया या बताया जाय तो यथा स्थिति सरपंच या नयायपीठ आदेश देगी कि अभियुक्त या गवाह (जमानतदार) जैसी की स्थिति से आदेश में बताई गई तारीख के अन्दर उक्त वैण्ड की रकम चुका देगा यदि उस अवधि के भीतर उक्त राशि सरपंच या न्यायपीठ के समक्ष नहीं चुकाई जाती है तो सरपंच उसकी वसूली उस तरीका से करेगा जो न्यायपीठ के द्वारा किये गये जुर्माना की वसुली के लिए बने नियमों में विहित हो।
नियम 51 :- किसी भी ग्राम कचहरी के न्यायपीठ की (भाषा) न्यायालय की भाषा हिन्दी होगी जो देवनागरी लिपि में लिखी जायेगी।
तीसरा दिन : 12 बजे अपराह्न से 1 बजे अपराह्न
विषय वस्तु : आर्डर सीट/न्यायादेश लिखने की बुनियादी ज्ञान
(नियम 07, 27 एवं 40)
नियम 07 :- आदेश पत्र (आर्डर सीट) ग्राम कचहरी द्वारा आदेश पत्र में निम्न बातों लिखित रहेगी।
(क) बाद या मुकदमा दायर करने के लिए गये आवेदन पत्र की तारीख और उस पर दिया गया आदेश (आर्डर)
(ख) प्रत्येक कार्यवाही की तारीख एवं सुनवाई
(ग) वाद या मुकदमों में दिये गये आदेश (आर्डर) का नोटशीट
(घ) सरपंच या उक्त मुकदमा में नामित का अनुपस्थिति तो नहीं है
(ड़) प्रत्येक तारीख में न्यायपीठ के सदस्यों के हस्ताक्षर
(च) न्यायपीठ के वैसे सदस्य का नाम जो उपस्थिति हो लेकिन आदेश पत्र पर अपना हस्ताक्षर करने से इंकार करते हो।
(छ) वह तारीख जिसके लिए वाद या मुकदमा की सुनवाई स्थगित कर दिया गया हो एवं स्थगन का कारण।
(ज) उन व्यक्तियों के नाम जो गवाह के रूप में जाँच के लिए उपस्थित हुए है या जिनकी जाँच किया गया है।
(झ) आवेदन-पत्रों के सारांश तथा इन पर दिये गये आदेश
(ञ) वाद या मुकदमों में न्यायपीठ के द्वारा दिया गया अंतिम आदेश
(ट) अन्य बातों जिसे कि ग्राम-कचहरी न्यायपीठ जरूरी समझे।
नियम 27 :-
(i) यदि ग्राम कचहरी की न्यायपीठ वाद/मुकदमा के सम्बन्ध में पूर्णत: (पूरा) या अंशत: (आंशिक) डिग्री देने का फैसला करता है। तो उस फैसले मं नीचे बताये गये ब्योरा अवश्य रहेगा :
(क) वाद में संबंधित पक्षों का नाम, पिता का नाम और पता,
(ख) दावा और दावे का विवरण
(ग) फैसले का आधार (ग्राउन्ड्रस)
(घ) वाद में खर्च सहित जितनी राशि की डिक्री की गई हो वह रकम या कोई अन्य सहायक (रिलीफ) जो दी गई और मंजूर की गई ब्याज की रकम।
(ii) (क) यदि न्यायपीठ कुछ रूपये पैसे चुकाने या कोई चल सम्पत्ति प्रदान करने का आदेश दे तो वह न्यायपीठ अपने फैसले में एक निश्चित तारीख चि करेगी। जब तक उक्त रकम या चल सम्पति चुकाई गई रकम या सम्पत्ति का उल्लेख बेंच अपने आदेश पत्र मै कर देगी तथा जो व्यक्ति उक्त फैसले की राशि या सम्पत्ति पायेगा वह प्राप्ति के लिए एक रसीद बना देगा जोक कि बाद के रिकार्ड के साथ लगाकर सुरक्षित रख दी जायेगी।
(ख) यदि इस भुगतान या प्रदान एक बार न कर किस्तों में किया जाने वाला तो फैसला में हर किस्त की नियत तारीख तय कर दी जयेगी।
(ग) यदि पक्ष द्वारा दावे की दशा में, ग्राम-कचहरी की न्यायपीठ के फैसले में छ: प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज उद्भूत की जा सकेगी। और जिस तारीख को उस रकम का दावा दायर किया गया हो, उस तारीख से लेकर डिक्री की राशि वसूल होने की तारीख (तिथि) तक ऐसा ब्याज (सूद) निर्पीत ऋणी (अजमेट डेटा) से वसूल किया जायेगा।
नियम 40 :-
(i) नियम 39 में बताये गये साक्ष्य प्राप्त करने के बाद तथा न्यायपीठ अपनी इच्छानुसार और भी जो कुछ साक्ष्य लेना चाहता हो और उचित समझता हो उसे प्राप्त करने के बाद और मुदालय की जाँच कर लेने के बाद अगर इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मुदालेह दोषी नहीं है तो वह धारा 103 के द्वारा विहीत रीति से अपना निर्णय करेगा।
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